बीकानेर के इन दो धुर विरोधियों के बीच हुआ ‘हवाई समझौता,बना चर्चा का विषय – बीकानेर तहलका
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बीकानेर के इन दो धुर विरोधियों के बीच हुआ ‘हवाई समझौता,बना चर्चा का विषय

तहलका न्यूज,बीकानेर। साढ़े चार साल से अपनों से ही जूझ रही कांग्रेस के लिये शनिवार को बीकानेर से राहत की खबर सामने आई है। जहां लंबे समय से चिर प्रतिद्वंद्वी एक जाजम पर बैठे नजर आएं। बस अंतर इतना था कि यह जाजम हवा में लगी थी। यानि जिले के दो धुर विरोधी नेताओं के बीच आखिरकार हवाई समझौता हो गया। जो राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस समझौतेे से आश्वस्त कांग्रेस अब प्रदेश स्तर पर चल सीएम के दो दावेदारों के मन को मिलाने की जुगत में लग गई है। राजनीति में एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाने वाले पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी और आपदा प्रबंधन मंत्री गोविंदराम मेघवाल के बीच सुलह हो गई। सुलह जमीन से कई सौ फीट ऊंचे उड़ रहे मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर में हुई। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई गले मिले। सुलह सीएम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने कराई। अगर ये सुलह जमीन पर दिखी तो भाजपा के लिए आने वाले विधानसभा चुनाव में नुकसानदायक साबित हो सकती है। दरअसल सीएम शनिवार को श्रीडूंगरगढ़ में तीन आयोजनों में शामिल होने के लिये आएं हुए थे। इस दौरान धीरदेसर चोटियान से जब सीएम हेलीकॉप्टर से सोनियासर जा रहे थे तो डूडी और मेघवाल को भी साथ ले लिया। हेलीकॉप्टर में पहले से मिठाई रखी थी। समझौते की पहल डोटासरा ने की। कुछ देर बातचीत के बाद दोनों के बीच समझौता करा दिया। जब सीएम सोनियासर गोदारान से जयपुर के लिए रवाना हुए तो गोविंद राम मेघवाल को भी साथ ले गए। उसके बाद तस्वीर मीडिया में आई। तस्वीरें सामने आते ही बीकानेर की राजनीति में हलचल शुरू हो गई क्योंकि अगर जमीनी स्तर पर दोनों नेताओं के बीच समझौता लागू हुआ तो भाजपा के लिए ना सिर्फ विधानसभा बल्कि लोकसभा चुनाव में भी मुश्किल हो सकती है। जैसे डूडी का प्रभाव जिले की सातों सीटों पर है ठीक उसी तरह एससी वोटरों पर सभी सीटों पर गोविंदराम मेघवाल की भी पकड़ है। इसका फायदा कांग्रेस के बाकी उम्मीदवारों को भी मिल सकता है।

समझौते की गणित समझें नोखा में रामेश्वर डूडी पिछली बार करीब 7 हजार वोटों से पराजित हुए थे। टक्कर भाजपा के बिहारी से आमने-सामने हुई थी। अब त्रिकोणीय मुकाबला होगा क्योंकि झंवर भी नोखा से निर्दलीय ताल ठोंक सकते हैं। नोखा में बड़ा वोट बैंक एससी का है जिस पर गोविंदराम मेघवाल का प्रभाव है जो डूडी से दूरी बनाए थे। अगर समझौता लागू हुआ तो डूडी के लिए विधानसभा की राह आसान होगी। खाजूवाला में खासी तादाद में जाट वोट भी हैं। डूडी का यहां असर है। गोविंद पिछला चुनाव जीतकर ही मंत्री बने लेकिन पांच साल सत्ता में रहने से एंटी इनकंबेंसी का जो नुकसान होगा उसकी भरपाई डूडी से समझौते से हो सकती है लेकिन दोनों नेताओं के बीच समझौते की असली परीक्षा लोकसभा चुनाव में होगी क्योंकि गोविंदराम मेघवाल खुद लोकसभा की दावेदारी कर चुके हैं। ऐसे में डूडी को गोविंद मंजूर हुए तो ही समझौता माना जाएगा।

असर यहां भी दोनों नेताओं का कोलायत, लूणकरणसर और श्रीडूंगरगढ़ विधानसभा में है। 2018 में कांग्रेस श्रीडूंगरगढ़ और लूणकरणसर चुनाव हार चुकी है। डूडी और वीरेन्द्र बेनीवाल के बीच मतभेद बरकरार हैं लेकिन पार्टी के लिए अच्छी बात ये है कि इन नेताओं के बीच संवाद जरूर शुरू हो गया। मंगलाराम के कार्यक्रम में जाकर डूडी ने नरमी दिखाई। इधर भाजपा से देवी सिंह भाटी बाहर हैं। उनका भी जिले की सभी सीटों पर प्रभाव है मगर उसका फायदा तभी होगा जब वे भाजपा में आएंगे। अगर भाटी बाहर रहते हैं तो इसका फायदा कांग्रेस उठाएगी। भाजपा इस गठजोड़ का मुकाबला करने के लिए रणनीति नहीं बना सकती वहां प्रदेश स्तर पर ही बड़ा बिखराव है जिसके तार बीकानेर जिले तक हैं। पार्टी के मौजूदा विधायकों में ही आपसी मतभेद बने हुए हैं। भाजपा में अर्जुनराम और डॉ.विश्वनाथ के बीच मतभेद जगजाहिर हैं।

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